Tuesday, February 14, 2017


काले और सफेद चूहों वाला ( करणी माता          देशनोक) मंदिर

आज में आप लोगो को एक ऐसे मंदिर के बारे मे बता रहा हूँ, जहाँ मंदिर में जहाँ भी नजर जाती है वहाँ चूहे ही चूहे दिखाई देते है। जी हां यह बिल्कुल सच है। आप को विश्वास नही हो रहा होगा, चलिये आप लोगों को में इस मंदिर के बारे में बताता हूं।

मंदिर क्यों प्रसिद्ध है:➡️
राजस्थान के ऐतिहासिक नगर बीकानेर से लगभग 30 किलो मीटर दूर देशनोक में स्तिथ करणी माता का मंदिर जिसे चूहों वाली माता, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
।यह चूहों के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है।इस मंदिर में चूहों को बहुत पवित्र माना जाता है।इस मंदिर परिसर में 20,000 चूहे रहते है और मंदिर में आने वाले भक्तों को चूहों का झूठा किया हुवा प्रसाद ही मिलता है।ना तोह चूहों को और न ही यहाँ आये श्रद्धालुओ को एक दूसरे से डर रहता है यहाँ भक्तो और चूहों का एक विशेष रिश्ता है।

यहाँ दुनिया भर से लोग देखने के लिए आते है
आश्चर्य की बात यह है की इतने चूहे होने के बाद भी मंदिर में बिल्कुल भी बदबू नहीं है, आज तक कोई भी बीमारी नहीं फैली है यहाँ तक की चूहों का झूठा प्रसाद खाने से कोई भी भक्त बीमार नहीं हुआ है।  इतना ही नहीं जब आज से कुछ दशको पूर्व पुरे भारत में प्लेग फैला था तब भी इस मंदिर में भक्तो का मेला लगा रहता था और वो चूहों का झूठा किया हुआ प्रसाद ही खाते थे।
साधारण लड़की से करणी माता कैसे बनी:➡️

करणी माता, जिन्हे की भक्त माँ जगदम्बा का अवतार मानते है, का जन्म 2 अक्टूबर 1387 में राजस्थान के एक चारण परिवार में हुआ था।उसके पिता मेहोजी चरण और माता देवल देवी के 7 बच्चे थे। उनका बचपन का नाम रिघुबाई था। रिघुबाई की शादी साठिका गाँव के किपोजी चारण से हुई थी लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही उनका मन सांसारिक जीवन
से ऊब गया इसलिए उन्होंने किपोजी चारण की शादी अपनी छोटी बहन गुलाब से करवाकर खुद को माता की भक्ति और लोगों की सेवा में लगा दिया। जनकल्याण, अलौकिक कार्य और चमत्कारिक शक्तियों के कारण रिघु बाई को करणी माता के नाम से स्थानीय लोग पूजने लगे। वर्तमान में जहाँ यह मंदिर स्तिथ है वहां पर एक गुफा में करणी माता अपनी इष्ट देवी की पूजा किया करती थी। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्तिथ है। कहते है करनी माता 151 वर्ष जिन्दा रहकर 23 मार्च 1538 को ज्योतिर्लिन हुई थी।  उनके ज्योतिर्लिं होने के पश्चात भक्तों ने उनकी मूर्ति की स्थापना कर के उनकी पूजा शुरू कर दी जो की तब से अब तक निरंतर जारी है।

करणी माता के मंदिर का निर्माण किसने कराया:➡️

करणी माता बीकानेर राजघराने की कुलदेवी है।  कहते है की उनके ही आशीर्वाद से बीकानेर और जोधपुर रियासत की स्थापना हुई थी। करणी माता के वर्तमान मंदिर का निर्माण
बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने 20 वी शताब्दी के शुरुआत में करवाया था। इस मंदिर में चूहों के अलावा, संगमरमर के मुख्य द्वार पर की गई उत्कृष्ट कारीगरी, मुख्य द्वार पर लगे चांदी के बड़े बड़े किवाड़, माता के सोने के छत्र  और चूहों के प्रसाद के लिए रखी चांदी की बहुत बड़ी परात भी मुख्य आकर्षण है।

सफ़ेद चूहों का महत्व:➡️
इस मंदिर में करीब 20000 काले चूहों के साथ कुछ सफ़ेद चूहे भी रहते है। इस चूहों को ज्यादा पवित्र माना जाता है।
 मान्यता है की यदि आपको सफ़ेद चूहा दिखाई दे गया तो आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी।

20000 काले और सपेद चूहों का रहष्य:.➡️
करनी माता की कथा के अनुसार एक बार करणी माता का सौतेला पुत्र ( उसकी बहन गुलाब और उसके पति का पुत्र ) लक्ष्मण, कोलायत में स्तिथ कपिल सरोवर में पानी पीने की कोशिश में डूब कर मर गया।  जब करणी माता को यह पता चला तो उन्होंने, मृत्यु के देवता याम को उसे पुनः जीवित करने की प्राथना की।  पहले तो यम राज़ ने मन किया पर बाद में उन्होंने विवश होकर उसे चूहे के रूप में पुनर्जीवित कर दिया।

हालॉकि बीकानेर के लोक गीतों में इन चूहों की एक अलग कहानी भी बताई जाती है जिसके अनुसार एक बार 20000 सैनिकों की एक सेना देशनोक पर आकर्मण करने आई जिन्हे माता ने अपने प्रताप से चूहे बना दिया और अपनी सेवा में रख लिया।


करणी माता का मेला कब लगता है:➡️
करणी माता मेला देशनोक में साल में दो बार आयोजित किया जाता है। पहला और बड़ा मेला चैत्र शुक्ल दशमी को चैत्र शुक्ल एकम से नवरात्र के दौरान मार्च-अप्रैल में आयोजित किया जाता है।
दूसरी निष्पक्ष अश्विन शुक्ला दशमी को नवरात्र के दौरान सितंबर-अक्टूबर में आयोजित किया जाता है, भी, अश्विन शुक्ला से।
नवरात्रि के दौरान हजारों लोगों के पैर से मंदिर के लिए यात्रा करते हैं।

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