Thursday, February 9, 2017

          

  राजस्थान के वीर

  महाराणा प्रताप का         इतिहास

एक सच्चे राजपूत, पराक्रमी, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि की रक्षा और उसके लिए मर मिटने वाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदा के लिए अमर हो गए किन्तु अपनी वीरता का गान सबके मुख और दिल में छोड़ कर गए

     महाराना  प्रताप  का  इतिहास


जिस वीरता, स्वाभिमान और त्यागमय जीवन को वरण किया, उसी ने उन्हें एक महान लोकनायक और वीर पुरुष के रूप में सदा-सदा के लिए भारतीय इतिहास में प्रतिष्ठित कर दिया है। महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के एक अत्यंत गौरवशाली पात्र है. उनके त्याग, शौर्य और राष्ट्रभक्ति की तुलना किसी से नहीं की जा सकती. उनके जन्म दिवस “ Maharana Pratap Jayanti ” हो हर वर्ष (9मई) येष्ट शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन मनाया जाता है |

उनका पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह है। उनका जन्म स्थान कुम्भलगढ़ दुर्ग में 9 मई 1540 को पिता राणा उदय सिंह और माता महाराणी जयवंता कँवर के घर में हुआ था |

Born :- 9 May 1540

Place : Kumbhalgarh Fort, Rajasthan

Died: – 29 January 1597 (aged 56)

Burial Place: Cremated in Vandoli village

Spouse : Ajabde Punwar

Reign :(शासन ) 28 February 1572 – 29 January 1597

उन्होंने अपने जीवन काल में कुल 11 शादियाँ की थी।

महाराणा प्रताप के सभी 11 पत्नियों के नाम
महारानी अज्बदे पुनवर, अमर्बाई राठौर, रत्नावातिबाई परमार, जसोबाई चौहान, फूल बाई राठौर, शाहमतिबाई हाडा, चम्पाबाई झाती, खीचर आशा बाई, अलाम्देबाई चौहान, लखाबाई, सोलान्खिनिपुर बाई।

महाराणा प्रताप के  सभी 17 पुत्र के नाम

अमर सिंह, भगवन दास, शेख सिंह, कुंवर दुर्जन सिंह, कुंवर राम सिंह, कुंवर रैभाना सिंह, चंदा सिंह, कुंवर हाथी सिंह, कुंवर नाथा सिंह, कुंवर कचरा सिंह, कुंवर कल्यान दास, सहस मॉल, कुंवर जसवंत सिंह, कुंवर पूरन मॉल, कुंवर गोपाल, कुंवर सनवाल दास सिंह, कुंवर माल सिंह।

महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। उनकी वीरता और दृढ़ संकल्प के कारण उनका नाम  इतिहास के पन्नों में अमर है। उन्होंने कई वर्षों तक मुग़ल सम्राट अकबर के साथ संगर्ष किया और उन्हें कई बार युद्ध मैं भी हराया। वे बचपन से ही शूरवीर, निडर, स्वाभिमानी और स्वतंत्रता प्रिय थे।
साल 1540 में (9 मई) आज के ही रोज एक ऐसा योद्धा पैदा हुआ था जिसने अपनी जनता और साम्राज्य से लड़ने के लिए कोई समझौते नहीं किए. भारत और दुनिया का इतिहास इस शख्स को महाराणा प्रताप के नाम से जानता है. वे मेवाड़ प्रांत के शासक थे और तब कभी न हाराए जा सकने वाले मुगलों से भिड़ गए थे.

प्रताप के नाम से मशहूर यह शख्स उदय सिंह द्वितीय और जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे जिन्हें उदयपुर का संस्थापक माना जाता है. दोस्त तो दोस्त उनके दुश्मन भी उनकी सैन्य क्षमता का लोहा मानते थे. अपने साम्राज्य को मुगलों के हवाले करने के क्रम में उनके संघर्षों के किस्से आज किंवदंती बन गए हैं

1. महाराणा प्रताप के शारीरिक सौष्ठव की वजह से उन्हें भारत के सबसे मजबूत लड़ाके का तमगा मिला था. वे 7 फीट 5 इंच लंबे थे और 80 किलोग्राम के भाले के साथ-साथ 208 किलोग्राम की दो तलवारें भी साथ लेकर चलते थे. इसके अलावा वह 72 किलोग्राम का कवच भी पहना करते थे.

2. महाराणा प्रताप का उनके साम्राज्य का राजा बनना भी सरल नहीं था. उनकी सौतेली मां अकबर के हाथों राजा उदय सिंह की हार के बाद कुंवर जगमाल को राजगद्दी पर बिठाना चाहती थीं. अकबर ने चितौड़ और मेवाड़ किले पर भी कब्जा कर लिया था और राजपूत राजघराने ने उदयपुर में शरण ली थी. उस दौरान लंबी बहस हुईं और महाराणा प्रताप के हाथ में कमान थमा दी गई.
स्वतंत्रता प्रेमी होने के कारण उन्होंने अकबर के अधीनता को पूरी तरीके से अस्वीकार कर दिया। यह देखते हुए अकबर नें कुल 4 बार अपने शांति दूतों को महाराणा प्रताप के पास भेजा। राजा अकबर के शांति दूतों के नाम थे जलाल खान कोरची, मानसिंह, भगवान दास और टोडरमल।

    मवाड में हुआ हल्दीघटी का युद्ध 



हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास की एक मुख्य कड़ी है। यह युद्ध 18 जून 1576 को लगभग 4 घंटों के लिए हुआ जिसमे मेवाड और मुगलों में घमासान युद्ध हुआ था। महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व एक मात्र मुस्लिम सरदार हाकिम खान सूरी ने किया और मुग़ल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था। इस युद्ध में कुल 20000 महारण प्रताप के राजपूतों का सामना अकबर की कुल 80000 मुग़ल सेना के साथ हुआ था जो की एक अद्वितीय बात है।

कुछ इतिहासकार कुछ ऐसा मानते हैं कि हल्दीघाटी के युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ परन्तु अगर देखें तो महाराणा प्रताप की ही विजय हुए है। अपनी छोटी सेना को छोटा ना समझ कर अपने परिश्रम और दृढ़ संकल्प से महाराणा प्रताप की सेना नें अकबर की विशाल सेना के छक्के छुटा दिए और उनको पीछे हटने के लिए मजबूर कर  दिया

5. महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल के लिए 1576 के हल्दीघाटी युद्ध को हमेशा याद किया जाता है. उनके पास मुगलों की तुलना में आधे सिपाही थे और उनके पास मुगलों की तुलना में आधुनिक हथियार भी नहीं थे लेकिन वे डटे रहे और मुगलों के दांत खट्टे कर दिए.




6. हल्दीघाटी की जंग 18 जून साल 1576 में चार घंटों के लिए चली. मुगलों की हालत इस जंग में पतली हो गई थी तभी उन्हें शक्ति सिंह के रूप में महाराणा का भेदिया भाई मिल गया. शक्ति सिंह ने मुगलों के समक्ष महाराणा की सारी सैन्य रणनीति और खुफिया रास्तों का खुलासा कर दिया.

7. इस पूरे युद्ध में राजपूतों की सेना मुगलों पर भारी पड़ रही थी और उनकी रणनीति सफल हो रही थी. महाराणा ने मुगलों के सेनापति मान सिंह (हाथी पर सवार) के ऊपर अपने घोड़े से हमला किया. इस हमले में हाथी से टकराने की वजह से उन्हें और चेतक को गहरी चोटें आईं. उनका घोड़ा चेतक युद्ध में उनका अहम साथी था. महाराणा बेहोशी की मुद्रा में चले गए. प्रताप के सेनापति मान सिंह झाला ने इस स्थिति से उन्हें निकालने के लिए अपने कपड़ों से उनके कपड़े बदल दिए ताकि मुगलों को चकमा दिया जा सके. चेतक महाराणा को लेकर वहां से सरपट दौड़ा लेकिन वह बुरी तरह घायल था. उसने एक अंतिम और ऐतिहासिक छलांग लगाई और महाराणा को लेकर हल्दीघाटी दर्रा पार कर गया. हालांकि, चेतक को इतनी चोटें आईं थीं कि वह नहीं बच सका.

8. इस युद्ध के बाद मेवाड़, चित्तौड़, गोगुंडा, कुंभलगढ़ और उदयपुर पर मुगलों का कब्जा हो गया. सारे राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो गए और महाराणा को दर-बदर भटकने के लिए छोड़ दिया गया.

9. महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के युद्ध में पीछे जरूर हटे थे लेकिन उन्होंने मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके. वे फिर से अपनी शक्ति जुटाने लगे. अगले तीन सालों में उन्होंने बामा शाह द्वारा दिए गए धन से 40,000 सैनिकों की सेना तैयार की और मुगलों से अपना अधिकांश साम्राज्य फिर से छीन लिया.

महाराणा प्रताप के प्रिय बहादुर घोड़े चेतक की मृत्यु भी इस युद्ध के दौरान हुई।


        चेतक की मृत्यु कैसे हुवी

महाराणा प्रताप ने मुगलों के सेनापति मान सिंह (हाथी पर सवार) के ऊपर अपने घोड़े से हमला किया. इस हमले में हाथी से टकराने की वजह से उन्हें और चेतक को गहरी चोटें आईं. उनका घोड़ा चेतक युद्ध में उनका अहम साथी था. महाराणा बेहोशी की मुद्रा में चले गए. प्रताप के सेनापति मान सिंह झाला ने इस स्थिति से उन्हें निकालने के लिए अपने कपड़ों से उनके कपड़े बदल दिए ताकि मुगलों को चकमा दिया जा सके. चेतक महाराणा को लेकर वहां से सरपट दौड़ा लेकिन वह बुरी तरह घायल था. उसने एक अंतिम और ऐतिहासिक छलांग लगाई और महाराणा को लेकर हल्दीघाटी दर्रा पार कर गया. हालांकि, चेतक को इतनी चोटें आईं थीं कि वह नहीं बच सका.


   महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई




11 वर्ष के पश्चात 29 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड, राजस्थान मे उनकी मृत्यु हो गई।

एक सच्चे राजपूत, पराक्रमी, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि की रक्षा और उसके लिए मर मिटने वाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदा के लिए अमर हो गए किन्तु अपनी वीरता का गान सबके मुख और दिल में छोड़ कर गए

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