Friday, February 24, 2017


        बंक्यारानी मंदिर
एक ऐसा मन्दिर जहाँ भुत भगाया जाता है


राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के आसिंद के नजदीक बंक्याराणी माता का मंदिर है।इस मंदिर में जाने के लिए 200 सीढ़ियां  छेड़नी पड़ती हैं।
इस मंदिर में भगाया जाता है भूत,
भुत को भगाने के लिए यहाँ रोजाना 300-400 यात्री आते है
 यहां हर शनिवार और रविवार को हजारों भक्तों के हुजूम के बीच 200-300 महिलाओं को ऐसी यातनाओं से गुजरना पड़ता है जिसे देखकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भूत से मुक्ति दिलाने के नाम पर यातनाएं, शरीर जख्मी हो जाता है कोहनियों से खून बहने लगता है


- बंक्याराणी माता मंदिर में होने वाले भोपा भूत भगाने वाले ओझा होते हैं।
मंदिर में घुसने से शुरू होती है कहानी

- कथित भूत-प्रेत से मुक्ति पाने की कहानी की शुरुआत भी मंदिर में घुसने के साथ ही शुरू हो जाती है। ऐसी महिलाओं को भोपा उलटे पांव 200 सीढ़िया चलाकर बंक्याराणी मंदिर में लेकर जाता है।
- नंगे पांव करीब3 -4घण्टे तक एक खंभे के चारों तरफ चक्कर लगवाए जाते हैं। मना करने पर भूत भगाने वाले भोपा इन्हें बुरी तरह से मारते-पीटते हैं।


पीठ और सिर के बल रेंगकर ये महिलाएं 200 सीढ़ियों से इसलिए नीचे उतरती हैं, ताकि इन्हें कथित भूत से मुक्ति मिल जाए। 
- सफेद संगमरमर की सीढ़ियां गर्मी में भट्‌टी की तरह गर्म हो जाती हैं। कपड़े पानी-पानी हो जाते हैं। शरीर जख्मी हो जाता है। सिर और कोहनियों से खून तक बहने लगता है।
- किस्सा यहीं खत्म नहीं होता। महिलाओं को चमड़े के जूतों से मारा जाता है। 
- पूरे वक्त ज्यादातर महिलाएं चीख-चीखकर ये कहती हैं कि उन पर भूत-प्रेत का साया नहीं,  लेकिन किसी पर कोई असर नहीं होता। छह-सात घंटे तक महिलाओं को भोपावो की यातनाये सहनी पड़ती हैं।

- मन्दिर परिसर में ज्वालामाता मंदिर में महिला के मुंह में एक जूता ठूंसा जाता है और एक सिर पर रखकर दो किलोमीटर दूर हनुमान मंदिर तक भोपा लेकर जाता है।
- इस दौरान भोपा साथ रहता है। महिला को बिना रुके चलना पड़ता है। यदि वो रुक जाए तो भोपा उसकी पिटाई करता है।
- हनुमान मंदिर में बने एक कुंड में महिला को भोपा स्नान करने का आदेश देता है। इस कुंड में दिन भर में करीब 300 महिलाएं स्नान करती हैं।
- कुंड का पानी इतना गंदा होता है कि देख भी नही सकते,हाथ धोना तोह दूर की बात है। लेकिन यही पानी महिला को चमड़े के जूते में लेकर पीना पड़ता है। वो भी एक-दो बार नहीं, बल्कि पूरे 7 बार पिलाया जाता है।
- भोपा यह ध्यान रखता है कि महिला पानी पी रही है या नहीं। यदि नहीं पीती है तो जबरदस्ती मार के पिलाया जाता है

Sunday, February 19, 2017

जीण माता का मंदिर


राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में सीकर से करीब 30 किलोमीटर दूर माता का एक चमत्कारी स्थान है। कहते हैं यह माता देवी रुप में प्रकट नहीं हुई थी बल्कि मनुष्य से देवी रुप में परिवर्तित हुई थी। इनकी चमत्कारी शक्ति ऐसी है कि इन्हें शक्तिपीठ की तरह पूजनीय माना जाता है।

जीण माता का जन्म
लोक मान्यता के अनुसार चौहान वंश के राजपूत परिवार में जीण माता का जन्म हुआ था। इनके बड़े भाई का नाम हर्ष था। भाई बहन दोनों एक दूसरे से खूब स्नेह करते थे।


भाई के स्नेह पर लगी थी जीण माता और उनकी भाभी में शर्त


ऐसा माना जाता है कि जीण माता का जन्म चौहान वंश के राजपूत परिवार में हुआ था। वह अपने भाई से बहुत स्नेह करती थीं। माता जीण अपनी भाभी के साथ तालाब से पानी लेने गई। पानी लेते समय भाभी और ननद में इस बात को लेकर झगड़ा शुरू हो गया कि हर्ष किसे ज्यादा स्नेह करता है। इस बात को लेकर दोनों में यह निश्चय हुआ कि हर्ष जिसके सिर से पानी का मटका पहले उतारेगा वही उसका अधिक प्रिय होगा। भाभी और ननद दोनों मटका लेकर घर पहुंची लेकिन हर्ष ने पहले अपनी पत्नी के सिर से पानी का मटका उतारा। यह देखकर जीण माता नाराज हो गई।

उसे लगा कि भाई उससे कम स्नेह करता है। इससे उसका मोह खत्म हो गया और आरावली के "काजल शिखर" पर पहुंच कर तपस्या करने लगी। तप के प्रभाव से चुरु में देवी का वास हो गया।

बहन को मनाने निकले हर्ष, नहीं मानी तो खुद की भैरों की तपस्या


नाराज होकर वह आरावली के काजल शिखर पर पहुंच कर तपस्या करने लगीं। तपस्या के प्रभाव से राजस्थान के चुरु में ही जीण माता का वास हो गया। अभी तक हर्ष इस विवाद से अनभिज्ञ था। इस शर्त के बारे में जब उन्हें पता चला तो वह अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने उन्हें मनाने काजल शिखर पर पहुंचे और अपनी बहन को घर चलने के लिए कहा लेकिन जीण माता ने घर जाने से मना कर दिया। बहन को वहां पर देख हर्ष भी पहाड़ी पर भैरों की तपस्या करने लगे और उन्होंने भैरो पद प्राप्त कर लिया।

एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है जीण माता का मंदिर

जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता है। माना जाता है कि माता दुर्गा की अवतार है। घने जंगल से घिरा हुआ है यह मंदिर तीन छोटी पहाड़ों के संगम पर स्थित है। इस मंदिर में संगमरमर का विशाल शिव लिंग और नंदी प्रतिमा आकर्षक है। इस मंदिर के बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। फिर भी कहते हैं की माता का मंदिर 1000 साल पुराना है। लेकिन कई इतिहासकार आठवीं सदी में जीण माता मंदिर का निर्माण काल मानते हैं।

औरंगजेब ने करी थी तोड़ने की कोशिश


लोक मान्यता के अनुसार एक बार मुगल बादशाह औरंगजेब ने राजस्थान के सीकर में स्थित जीण माता और भैरों के मंदिर को तोडऩे के लिए अपने सैनिकों को भेजा। जब यह बात स्थानीय लोगों को पता चली तो बहुत दुखी हुए। बादशाह के इस व्यवहार से दुखी होकर लोग जीण माता की प्रार्थना करने लगे। इसके बाद जीण माता ने अपना चमत्कार दिखाया और वहां पर मधुमक्खियों के एक झुंड ने मुगल सेना पर धावा बोल दिया।

मधुमक्खियों के काटे जाने से बेहाल पूरी सेना घोड़े और मैदान छोड़कर भाग खड़ी हुई। कहते है कि स्वयं बादशाह की हालत बहुत गंभीर हो गई तब बादशाह ने अपनी गलती मानकर माता को अखंड ज्योज जलाने का वचन दिया और कहा कि वह हर महीने सवा मन तेल इस ज्योत लिए भेंट करेगा। इसके बाद औरंगजेब की तबीयत में सुधार होने लगा।


जो पुजारी जीण माता की पूजा करते हैं, वो पाराशर ब्राह्मण हैं।

जीण भवानी की सुबह 4 बजे मंगला आरती होती है। आठ बजे श्रृंगार के बाद आरती होती है व सायं सात बजे आरती होती है। दोनों आरतियों के बाद भोग (चावल) का वितरण होता है।

माता के मन्दिर के गर्भ गृह के द्वार (दरवाजे) 24 घंटे खुले रहते हैं। केवल श्रृंगार के समय पर्दा लगाया जाता है।


हर वर्ष शरद पूर्णिमा को मन्दिर में विशेष उत्सव मनाया जाता है, जिसमें पुजारियों की बारी बदल जाती है।

हर वर्ष भाद्रपक्ष महीने में शुक्ल पक्ष में श्री मद्‌देवी भागवत का पाठ व महायज्ञ होता है।

Tuesday, February 14, 2017


काले और सफेद चूहों वाला ( करणी माता          देशनोक) मंदिर

आज में आप लोगो को एक ऐसे मंदिर के बारे मे बता रहा हूँ, जहाँ मंदिर में जहाँ भी नजर जाती है वहाँ चूहे ही चूहे दिखाई देते है। जी हां यह बिल्कुल सच है। आप को विश्वास नही हो रहा होगा, चलिये आप लोगों को में इस मंदिर के बारे में बताता हूं।

मंदिर क्यों प्रसिद्ध है:➡️
राजस्थान के ऐतिहासिक नगर बीकानेर से लगभग 30 किलो मीटर दूर देशनोक में स्तिथ करणी माता का मंदिर जिसे चूहों वाली माता, चूहों वाला मंदिर और मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
।यह चूहों के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है।इस मंदिर में चूहों को बहुत पवित्र माना जाता है।इस मंदिर परिसर में 20,000 चूहे रहते है और मंदिर में आने वाले भक्तों को चूहों का झूठा किया हुवा प्रसाद ही मिलता है।ना तोह चूहों को और न ही यहाँ आये श्रद्धालुओ को एक दूसरे से डर रहता है यहाँ भक्तो और चूहों का एक विशेष रिश्ता है।

यहाँ दुनिया भर से लोग देखने के लिए आते है
आश्चर्य की बात यह है की इतने चूहे होने के बाद भी मंदिर में बिल्कुल भी बदबू नहीं है, आज तक कोई भी बीमारी नहीं फैली है यहाँ तक की चूहों का झूठा प्रसाद खाने से कोई भी भक्त बीमार नहीं हुआ है।  इतना ही नहीं जब आज से कुछ दशको पूर्व पुरे भारत में प्लेग फैला था तब भी इस मंदिर में भक्तो का मेला लगा रहता था और वो चूहों का झूठा किया हुआ प्रसाद ही खाते थे।
साधारण लड़की से करणी माता कैसे बनी:➡️

करणी माता, जिन्हे की भक्त माँ जगदम्बा का अवतार मानते है, का जन्म 2 अक्टूबर 1387 में राजस्थान के एक चारण परिवार में हुआ था।उसके पिता मेहोजी चरण और माता देवल देवी के 7 बच्चे थे। उनका बचपन का नाम रिघुबाई था। रिघुबाई की शादी साठिका गाँव के किपोजी चारण से हुई थी लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही उनका मन सांसारिक जीवन
से ऊब गया इसलिए उन्होंने किपोजी चारण की शादी अपनी छोटी बहन गुलाब से करवाकर खुद को माता की भक्ति और लोगों की सेवा में लगा दिया। जनकल्याण, अलौकिक कार्य और चमत्कारिक शक्तियों के कारण रिघु बाई को करणी माता के नाम से स्थानीय लोग पूजने लगे। वर्तमान में जहाँ यह मंदिर स्तिथ है वहां पर एक गुफा में करणी माता अपनी इष्ट देवी की पूजा किया करती थी। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्तिथ है। कहते है करनी माता 151 वर्ष जिन्दा रहकर 23 मार्च 1538 को ज्योतिर्लिन हुई थी।  उनके ज्योतिर्लिं होने के पश्चात भक्तों ने उनकी मूर्ति की स्थापना कर के उनकी पूजा शुरू कर दी जो की तब से अब तक निरंतर जारी है।

करणी माता के मंदिर का निर्माण किसने कराया:➡️

करणी माता बीकानेर राजघराने की कुलदेवी है।  कहते है की उनके ही आशीर्वाद से बीकानेर और जोधपुर रियासत की स्थापना हुई थी। करणी माता के वर्तमान मंदिर का निर्माण
बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने 20 वी शताब्दी के शुरुआत में करवाया था। इस मंदिर में चूहों के अलावा, संगमरमर के मुख्य द्वार पर की गई उत्कृष्ट कारीगरी, मुख्य द्वार पर लगे चांदी के बड़े बड़े किवाड़, माता के सोने के छत्र  और चूहों के प्रसाद के लिए रखी चांदी की बहुत बड़ी परात भी मुख्य आकर्षण है।

सफ़ेद चूहों का महत्व:➡️
इस मंदिर में करीब 20000 काले चूहों के साथ कुछ सफ़ेद चूहे भी रहते है। इस चूहों को ज्यादा पवित्र माना जाता है।
 मान्यता है की यदि आपको सफ़ेद चूहा दिखाई दे गया तो आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी।

20000 काले और सपेद चूहों का रहष्य:.➡️
करनी माता की कथा के अनुसार एक बार करणी माता का सौतेला पुत्र ( उसकी बहन गुलाब और उसके पति का पुत्र ) लक्ष्मण, कोलायत में स्तिथ कपिल सरोवर में पानी पीने की कोशिश में डूब कर मर गया।  जब करणी माता को यह पता चला तो उन्होंने, मृत्यु के देवता याम को उसे पुनः जीवित करने की प्राथना की।  पहले तो यम राज़ ने मन किया पर बाद में उन्होंने विवश होकर उसे चूहे के रूप में पुनर्जीवित कर दिया।

हालॉकि बीकानेर के लोक गीतों में इन चूहों की एक अलग कहानी भी बताई जाती है जिसके अनुसार एक बार 20000 सैनिकों की एक सेना देशनोक पर आकर्मण करने आई जिन्हे माता ने अपने प्रताप से चूहे बना दिया और अपनी सेवा में रख लिया।


करणी माता का मेला कब लगता है:➡️
करणी माता मेला देशनोक में साल में दो बार आयोजित किया जाता है। पहला और बड़ा मेला चैत्र शुक्ल दशमी को चैत्र शुक्ल एकम से नवरात्र के दौरान मार्च-अप्रैल में आयोजित किया जाता है।
दूसरी निष्पक्ष अश्विन शुक्ला दशमी को नवरात्र के दौरान सितंबर-अक्टूबर में आयोजित किया जाता है, भी, अश्विन शुक्ला से।
नवरात्रि के दौरान हजारों लोगों के पैर से मंदिर के लिए यात्रा करते हैं।

Saturday, February 11, 2017

महाराणा प्रताप की 10 महत्पूर्ण बाते जो आप नही जानते है

https://www.youtube.com/watch?v=AjWmXJn3n00
1.-भाला 80 किलो का तोह कवच 71 किलो का पहनते है। कुल शरीर पर 208 kg का वजन लके चलते है



2- महाराणा प्रताप की 14 पत्नियां थी


3-महाराणा प्रताप का साथ दे कर पठान अकबर के खिलाफ खेड़ा हो गए।

4-महाराणा प्रताप एक बहादुर राजा था,वो दुश्मनो के लिए भी तलवार रखते थे।

5-महाराणा प्रताप जंगलो में घास की रोटी खाकर गुजरे थे दिन

6- महाराण प्रताप के घोड़े चेतक की गति की वजह से कहा जाता था,की चेतक हवा में उड़ता था

7-महाराणा प्रताप  की तलवार के एक वार से दुश्मनो के कर देते थे दो टुकड़े

8-महाराणा प्रताप से अकबर सपने में भी डर जाता था

9-हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप का सेनापति बिना सर के भी लड़ा था

10-महाराणा प्रताप की मौत के बाद अकबर रो पड़े थे।

Friday, February 10, 2017

बुलेट बाबा" बुलेट राजा  का दर्शनीय स्थान


दिसम्बर में मे राजस्थान घूमने गया था।हमारे देश में भगवान,पशु और पेड़ों की पूजा सबसे आम बात है।  लेकिन बात जब किसी बुलेट(7773) की पूजा की आती है तो खबर बनती है। भारत के जोधपुर के नजदीक पाली जिले में स्थापित है. यह तीर्थ स्थान पाली से 20 किलोमीटर दूर और जोधपुर से 50 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है, पाली-जोधपुर हाईवे से जाते समय यह तीर्थ स्थान चोटिला ग्राम के नजदीक आता है.
यहां एक मोटरसाइकिल (बुलेट7773) का मंदिर है। इस मंदिर में श्रद्धालु बुलेट के सामने माथा टेकते हैं,उसे माला पहनाते हैं और ज्वाला 24 घण्टे जलती है।और अपनी और अपनाें की मन्नत मांगते हैं।

ॐ बन्ना की म्रत्यु कैसे हुवी:⬇️
दरअसल 2दिसम्बर 1988 में इसी स्थान पर ठाकुर जोग सिंह के बड़े बेटे 25 वर्षीय ठाकुर ओम सिंह राठौड़(ओम बन्ना)अपनी बुलेट पर अपने ससुराल बगड़ी,साण्डेराव से अपने गाँव चोटिला आ रहे थे तभी उनका एक्सीडेंट एक पेड़ से टकराने से हो गया ओम सिंह राठौड़ की उसी वक़्त मृत्यु हो गयी थी।

ॐ बन्ना की बुलेट का अदभुद रहष्य:⤵️

एक्सीडेंट के बाद उनकी बुलेट को रोहिट थाने ले जाया गया पर अगले दिन पुलिस कर्मियों को वो बुलेट थाने में नही मिली वो बुलेट स्वतः स्टार्ट हो के बिना सवारी चल कर उसी स्थान पर चली गयी अगले दिन फिर उनकी बुलेट को रोहिट थाने ले जाया गया पर फिर वही बात हुयी,ऐसा तीन बार हुआ चौथी बार पुलिस ने बुलेट को थाने में चैन से बाँध कर रखा पर बुलेट सबके सामने स्वतः चालु होकर पुनः अपने मालिक  के दुर्घटना स्थल पर पहुंच गयी अतः ग्रामीणो और पुलिस वालो नेअद्बुध चमत्कार मान कर उस बुलेट को वही पर रख दिया

जब इसे घर वापस लाने पर भी ऐसा ही हुआ तो ओम बन्ना के पिता जोग सिंह ने घटनास्थल पर एक छोटा सा पूजा स्थल बनवा दिया।

बुलेट बाबा नाम कैसे पडा:➡️


यह चमत्कार देखने के लिये स्थानिक लोग उस मोटरसाइकिल को देखने आया करते थे और जल्द ही उन्होंने उस “बुलेट बाइक” की पूजा करना भी शुरू कर दी. चमत्कार की यह कहानी जल्द ही आस-पास के गाँवो में फैलने लगी और बाद में उस जगह पर मोटरसाइकिल का मंदिर भी बनवाया गया. यह मंदिर “बुलेट बाबा मंदिर” के नाम से जाना जाता है और ऐसा कहा जाता है की यहाँ प्रार्थना करने से यात्रा सुरक्षित रहती है.


ओम बन्ना की पूजा :⬇️

हर दिन आस पास के गाँव वाले और यात्री वहा रुकते है और उस बाइक की पूजा करते है. कुछ लोग वहा अपनी यात्रा की सुरक्षा की प्रार्थना की कामना करते हुए मंदिर में शराब की बोतल भी चढाते है. और ऐसा कहा जाता है की वहा से गुजरते समय जो यात्री वहा प्रार्थना नही करता उसकी यात्रा जोखिम भरी होती है. वहा पूजा करने आये लोग बाइक को तिलक लगाकर लाल कपडा भी बांधते है. और साथ ही स्थानिक लोग ओम बन्ना के नाम से लोकगीत भी गाते है.

बहोत से लोग वहाँ सुरक्षित यात्रा की कामना करते हुए फूल, नारियल और लाल कपडा भी चढाते है.


ओम बन्ना की पवित्र आत्मा आज भी वह लोगो को अपनी मौजूदगी का एहसास कराती है आज भी रोहट थाने के नए ठाणेदार जोइनिंग से पहले वह धोक देते है।कोई भी गाड़ी वाले नेशनल हाइवे 65 से निकले हे तोह वहाँ माथा टेकने जरूर जाते है

ॐ बन्ना का मेला कब लगता है:➡️


लोगों की आस्था ऐसी बढ़ी कि अब हर साल ओम बन्ना की पुण्यतिथि मार्गशीर्ष माह की कृष्णपक्ष अष्टमी पर यहां मेला लगता है और हज़ारों श्रद्धालु अपने मंगलमय और सुरक्षित जीवन की मन्नत मांगने आते हैं।

ॐ बन्ना की बुलेट कहाँ रखी है:➡️


बन्ना की 350 cc रॉयल एनफ़ील्ड बुलेट (7773) शीशे के एक आवरण में पूजास्थल पर रखी गई है। अब पुरे राजस्थान में ओम बन्ना को सड़क सुरक्षा दूत के रूप में पूजा जाने लगा है।

ओम बन्ना का यह मंदिर सालभर सड़क सुरक्षा का सन्देश देता है

Thursday, February 9, 2017

          

  राजस्थान के वीर

  महाराणा प्रताप का         इतिहास

एक सच्चे राजपूत, पराक्रमी, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि की रक्षा और उसके लिए मर मिटने वाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदा के लिए अमर हो गए किन्तु अपनी वीरता का गान सबके मुख और दिल में छोड़ कर गए

     महाराना  प्रताप  का  इतिहास


जिस वीरता, स्वाभिमान और त्यागमय जीवन को वरण किया, उसी ने उन्हें एक महान लोकनायक और वीर पुरुष के रूप में सदा-सदा के लिए भारतीय इतिहास में प्रतिष्ठित कर दिया है। महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के एक अत्यंत गौरवशाली पात्र है. उनके त्याग, शौर्य और राष्ट्रभक्ति की तुलना किसी से नहीं की जा सकती. उनके जन्म दिवस “ Maharana Pratap Jayanti ” हो हर वर्ष (9मई) येष्ट शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन मनाया जाता है |

उनका पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह है। उनका जन्म स्थान कुम्भलगढ़ दुर्ग में 9 मई 1540 को पिता राणा उदय सिंह और माता महाराणी जयवंता कँवर के घर में हुआ था |

Born :- 9 May 1540

Place : Kumbhalgarh Fort, Rajasthan

Died: – 29 January 1597 (aged 56)

Burial Place: Cremated in Vandoli village

Spouse : Ajabde Punwar

Reign :(शासन ) 28 February 1572 – 29 January 1597

उन्होंने अपने जीवन काल में कुल 11 शादियाँ की थी।

महाराणा प्रताप के सभी 11 पत्नियों के नाम
महारानी अज्बदे पुनवर, अमर्बाई राठौर, रत्नावातिबाई परमार, जसोबाई चौहान, फूल बाई राठौर, शाहमतिबाई हाडा, चम्पाबाई झाती, खीचर आशा बाई, अलाम्देबाई चौहान, लखाबाई, सोलान्खिनिपुर बाई।

महाराणा प्रताप के  सभी 17 पुत्र के नाम

अमर सिंह, भगवन दास, शेख सिंह, कुंवर दुर्जन सिंह, कुंवर राम सिंह, कुंवर रैभाना सिंह, चंदा सिंह, कुंवर हाथी सिंह, कुंवर नाथा सिंह, कुंवर कचरा सिंह, कुंवर कल्यान दास, सहस मॉल, कुंवर जसवंत सिंह, कुंवर पूरन मॉल, कुंवर गोपाल, कुंवर सनवाल दास सिंह, कुंवर माल सिंह।

महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। उनकी वीरता और दृढ़ संकल्प के कारण उनका नाम  इतिहास के पन्नों में अमर है। उन्होंने कई वर्षों तक मुग़ल सम्राट अकबर के साथ संगर्ष किया और उन्हें कई बार युद्ध मैं भी हराया। वे बचपन से ही शूरवीर, निडर, स्वाभिमानी और स्वतंत्रता प्रिय थे।
साल 1540 में (9 मई) आज के ही रोज एक ऐसा योद्धा पैदा हुआ था जिसने अपनी जनता और साम्राज्य से लड़ने के लिए कोई समझौते नहीं किए. भारत और दुनिया का इतिहास इस शख्स को महाराणा प्रताप के नाम से जानता है. वे मेवाड़ प्रांत के शासक थे और तब कभी न हाराए जा सकने वाले मुगलों से भिड़ गए थे.

प्रताप के नाम से मशहूर यह शख्स उदय सिंह द्वितीय और जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे जिन्हें उदयपुर का संस्थापक माना जाता है. दोस्त तो दोस्त उनके दुश्मन भी उनकी सैन्य क्षमता का लोहा मानते थे. अपने साम्राज्य को मुगलों के हवाले करने के क्रम में उनके संघर्षों के किस्से आज किंवदंती बन गए हैं

1. महाराणा प्रताप के शारीरिक सौष्ठव की वजह से उन्हें भारत के सबसे मजबूत लड़ाके का तमगा मिला था. वे 7 फीट 5 इंच लंबे थे और 80 किलोग्राम के भाले के साथ-साथ 208 किलोग्राम की दो तलवारें भी साथ लेकर चलते थे. इसके अलावा वह 72 किलोग्राम का कवच भी पहना करते थे.

2. महाराणा प्रताप का उनके साम्राज्य का राजा बनना भी सरल नहीं था. उनकी सौतेली मां अकबर के हाथों राजा उदय सिंह की हार के बाद कुंवर जगमाल को राजगद्दी पर बिठाना चाहती थीं. अकबर ने चितौड़ और मेवाड़ किले पर भी कब्जा कर लिया था और राजपूत राजघराने ने उदयपुर में शरण ली थी. उस दौरान लंबी बहस हुईं और महाराणा प्रताप के हाथ में कमान थमा दी गई.
स्वतंत्रता प्रेमी होने के कारण उन्होंने अकबर के अधीनता को पूरी तरीके से अस्वीकार कर दिया। यह देखते हुए अकबर नें कुल 4 बार अपने शांति दूतों को महाराणा प्रताप के पास भेजा। राजा अकबर के शांति दूतों के नाम थे जलाल खान कोरची, मानसिंह, भगवान दास और टोडरमल।

    मवाड में हुआ हल्दीघटी का युद्ध 



हल्दीघाटी का युद्ध भारत के इतिहास की एक मुख्य कड़ी है। यह युद्ध 18 जून 1576 को लगभग 4 घंटों के लिए हुआ जिसमे मेवाड और मुगलों में घमासान युद्ध हुआ था। महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व एक मात्र मुस्लिम सरदार हाकिम खान सूरी ने किया और मुग़ल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था। इस युद्ध में कुल 20000 महारण प्रताप के राजपूतों का सामना अकबर की कुल 80000 मुग़ल सेना के साथ हुआ था जो की एक अद्वितीय बात है।

कुछ इतिहासकार कुछ ऐसा मानते हैं कि हल्दीघाटी के युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ परन्तु अगर देखें तो महाराणा प्रताप की ही विजय हुए है। अपनी छोटी सेना को छोटा ना समझ कर अपने परिश्रम और दृढ़ संकल्प से महाराणा प्रताप की सेना नें अकबर की विशाल सेना के छक्के छुटा दिए और उनको पीछे हटने के लिए मजबूर कर  दिया

5. महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल के लिए 1576 के हल्दीघाटी युद्ध को हमेशा याद किया जाता है. उनके पास मुगलों की तुलना में आधे सिपाही थे और उनके पास मुगलों की तुलना में आधुनिक हथियार भी नहीं थे लेकिन वे डटे रहे और मुगलों के दांत खट्टे कर दिए.




6. हल्दीघाटी की जंग 18 जून साल 1576 में चार घंटों के लिए चली. मुगलों की हालत इस जंग में पतली हो गई थी तभी उन्हें शक्ति सिंह के रूप में महाराणा का भेदिया भाई मिल गया. शक्ति सिंह ने मुगलों के समक्ष महाराणा की सारी सैन्य रणनीति और खुफिया रास्तों का खुलासा कर दिया.

7. इस पूरे युद्ध में राजपूतों की सेना मुगलों पर भारी पड़ रही थी और उनकी रणनीति सफल हो रही थी. महाराणा ने मुगलों के सेनापति मान सिंह (हाथी पर सवार) के ऊपर अपने घोड़े से हमला किया. इस हमले में हाथी से टकराने की वजह से उन्हें और चेतक को गहरी चोटें आईं. उनका घोड़ा चेतक युद्ध में उनका अहम साथी था. महाराणा बेहोशी की मुद्रा में चले गए. प्रताप के सेनापति मान सिंह झाला ने इस स्थिति से उन्हें निकालने के लिए अपने कपड़ों से उनके कपड़े बदल दिए ताकि मुगलों को चकमा दिया जा सके. चेतक महाराणा को लेकर वहां से सरपट दौड़ा लेकिन वह बुरी तरह घायल था. उसने एक अंतिम और ऐतिहासिक छलांग लगाई और महाराणा को लेकर हल्दीघाटी दर्रा पार कर गया. हालांकि, चेतक को इतनी चोटें आईं थीं कि वह नहीं बच सका.

8. इस युद्ध के बाद मेवाड़, चित्तौड़, गोगुंडा, कुंभलगढ़ और उदयपुर पर मुगलों का कब्जा हो गया. सारे राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो गए और महाराणा को दर-बदर भटकने के लिए छोड़ दिया गया.

9. महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के युद्ध में पीछे जरूर हटे थे लेकिन उन्होंने मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके. वे फिर से अपनी शक्ति जुटाने लगे. अगले तीन सालों में उन्होंने बामा शाह द्वारा दिए गए धन से 40,000 सैनिकों की सेना तैयार की और मुगलों से अपना अधिकांश साम्राज्य फिर से छीन लिया.

महाराणा प्रताप के प्रिय बहादुर घोड़े चेतक की मृत्यु भी इस युद्ध के दौरान हुई।


        चेतक की मृत्यु कैसे हुवी

महाराणा प्रताप ने मुगलों के सेनापति मान सिंह (हाथी पर सवार) के ऊपर अपने घोड़े से हमला किया. इस हमले में हाथी से टकराने की वजह से उन्हें और चेतक को गहरी चोटें आईं. उनका घोड़ा चेतक युद्ध में उनका अहम साथी था. महाराणा बेहोशी की मुद्रा में चले गए. प्रताप के सेनापति मान सिंह झाला ने इस स्थिति से उन्हें निकालने के लिए अपने कपड़ों से उनके कपड़े बदल दिए ताकि मुगलों को चकमा दिया जा सके. चेतक महाराणा को लेकर वहां से सरपट दौड़ा लेकिन वह बुरी तरह घायल था. उसने एक अंतिम और ऐतिहासिक छलांग लगाई और महाराणा को लेकर हल्दीघाटी दर्रा पार कर गया. हालांकि, चेतक को इतनी चोटें आईं थीं कि वह नहीं बच सका.


   महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई




11 वर्ष के पश्चात 29 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड, राजस्थान मे उनकी मृत्यु हो गई।

एक सच्चे राजपूत, पराक्रमी, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि की रक्षा और उसके लिए मर मिटने वाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदा के लिए अमर हो गए किन्तु अपनी वीरता का गान सबके मुख और दिल में छोड़ कर गए